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गांधीजी ने अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना 14-12-1934 को महिला आश्रम, वर्धा के ऊपरी कक्ष में की थी। बापू की इच्छानुसार इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए कांग्रेस द्वारा “स्थायित्व की अर्थव्यवस्था” के सिद्धांत के लिए प्रख्यात डॉ. जोसेफ कार्नेलियस कुमारप्पा का चयन किया गया। इस संगठन के प्रथम अध्यक्ष श्री कृष्णदास जाजू बने । अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ का एक बोर्ड ( संचालक मंडल) था, जिसमें डॉ.सी.वी. रमण एवं डॉ.जे.सी. बोस जैसे विख्यात वैज्ञानिक तथा समाज एवं उद्योग से जुड़ी हुई जानी-मानी हस्तियाँ जिनमें रवींद्रनाथ टैगोर, जी. डी. बिरला, एम.ए. अंसारी और सतीशचंद्र दासगुप्ता के साथ अन्य 18 सलाहकार थे।
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देश में ग्रामीण औद्योगीकरण की प्रक्रिया का समर्थन, उन्नयन और तेजी लाने के लिए, ताकि हम स्थायी ग्राम अर्थव्यवस्था के गांधीवादी दृष्टिकोण की ओर बढ़ सकें, जो रोजगार और सुविधाओं में पर्याप्त रूप से आत्मनिर्भर हो और एस प्रदान करे।
रामकृष्णैया समिति (1987) ने सिफारिश की कि किसी भी उत्पाद को तब तक ग्रामीण माना जा सकता है जब तक संबंधित उद्योग में प्रति व्यक्ति निवेश 50,000 रुपये (अब आदिवासी क्षेत्रों के लिए 1,00,000 और 1,50,000 रुपये तक) हो। 20,000 से कम आबादी वाले एक निवास स्थान में (अब 50,000 तक)।